सास और बहु रानी हमेशा से ही शहर के तौर तरीके और कपड़ों से बहुत आकर्षित रहती हैं 1 दिन दोनों शहर जाकर खरीदारी करने की ठान लेते हैं और आखिरकार वह शहर के बहुत मशहूर भाषा में पहुंच जाती है
आसपास के लोगों से पूछती है अच्छे से अच्छे कपड़े कहां मिलते हैं और वहां से चला जाता है दोनों अंदर घुसते ही आंखें फटी की फटी रह जाती है जी माताजी और भाई बड़ी उत्सुकता से कपड़ों का एक बड़ा सा भी लेकर बहुत प्राय रुक जाती है जैसे ही वह दोनों यह कपड़े पहनकर ट्रायल रूम से बाहर आती है सिर्फ मंथन कर देता है और वो हिला कर अपनी मना ही दायर कर देता है
सविता बहू की कान में कहती है लगता है इसको हमारे कपड़े नहीं आती है चिड़िया बजाते हुए सास बहू दुकान से बाहर आ जाती है दुकान से बाहर निकलते ही सरिता से पूछने लगती है ऐसा करते-करते इन दोनों के पास ग्राहकों की भीड़ इकट्ठा होने लगती है दुकान का मालिक इन दोनों को वहां से बाहर निकाल देता है और चुपचाप मुंह छुपा कर मर जाती है बाहर सड़क पर चलते हुए हैं
स्भी ले नौटंकी की दुकान से ट्रैफिक पुलिस के कपड़े ले लेती है इकबाल जैसे ही यह पूरा वाक्य अपने बेटे को सुनाती है तो वह भी अपनी हंसी नहीं रोक पाता और कहता है अरे मां लोगों की बराबरी करने और मजे करने के चक्कर में आज आपका तो मजाक बन गया ना और लोग तो आप पर हसेंगे ही कपड़े तो पहन कर आई हो बेटा आराम की दोनों को छूकर का मतलब समझाता है और वादा करता है कि अगली बार वह शहर से उनके लिए अच्छे शहरी कपड़े जरूर लेकर आएगा अरे बेटा शहर के कपड़े ना शेर के कपड़े जैसे है
आपका तो मजाक बन गया ना और लोग तो आप पर हसेंगे ही आप जो घर के कपड़े जो पहन कर आई हो बेटा आराम से दोनों को जोकर का मतलब समझाता है और वादा करता है कि अगली बार वह शहर से उनके लिए अच्छे शहरी कपड़े जरूर लेकर आएगा, अपना गांव अपना भेष /