POEM & कविता: मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर

POEM & कविता: मंजिलो को प्यार कर, रास्तो को पार कर

“मंजिलो को प्यार कर,
रास्तो को पार कर,
गर न हो सके सफल,
तो बैठ मत तू हार कर।

है जरूर तू टूटा अंदर से,
निकल निराश के समंदर से,
मेहनत को गुना चार कर,
मंज़िलो को प्यार कर।

कदम तुझे ही है बढ़ाने,
छोड़ कर सारे बहाने,
उठ खड़ा हो वार कर,
रास्तो को पार कर,
मंजिलो को प्यार कर।

है गांडीव तू अर्जुन का,
है महीना तू जून का,
खुद को बस सम्भाल अब,
उठा मस्तक भाल अब,
अपने डरो को मार कर,
मंजिलो को प्यार कर,
रास्तो को पार कर।”

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