The Poem – कृपा बनाये रखना
तू जानती है माँ
तुझसे बिछड़ के खूब रोता हूँ
भटकता हूँ इधर उधर बस
कहा फिर चैन से सोता हूँ
तेरी हर उम्मीद पर ही मैं
खरा उतरना चाहता हूँ
बस तेरी इबादत मैं
दिलो- जान से
करना चाहता हूं
ज़िंदगी छोड़ने का विचार तो
मुझे भी कभी आता है
पर आत्महत्या से भला
कौन तुंझे खुश कर पाता है
तू बस प्रसन्न होती उस पर मैया
जिसे हालातो से लड़ना आता है
जानता हूँ कायरता तुंझे रास नही आती
जो बस भोग विलास को अपनाएं
तू उनके पास नही आती
तुंझे तो पवित्रता ही भांति है
जो प्रयास करे बिगड़े बच्चे
तो माँ
उन्हें तू पावन बनाती है
माता लीला तेरी निराली है
कोयले को तू ही हीरा बनाती है
और दलदल में भी
प्यारा सा
कमल खिलाती है
जिसके मन में बसी हो माँ
वहां माया टिक नही सकती
ऐसा मन रहता है पवित्र सदा
वहां विकारों की ज्वाला
कभी जल नही सकती
असम्भव जैसा कुछ
है नही आपके लिये
आस का दीपक माता
हमारा भी जलाए रखना
कभी बुझ न जाए
आपका ये मासूम चिराग
इसे रोशन बनाए रखना
छोड़ना नही साथ मेरा कभी
बस ऐसी कृपा बनाये रखना
माँ बनाये रखना
धन्यवाद